किताबों का शहर

किताबों का शहर

आओ एक किताबों का शहर रचते हैं,क्षणिक मनोरंजन के साधनों को इस से बाहर रखते हैंआओ एक किताबों का शहर रचते हैंपन्नों की खुशबू,स्याही की चाल से,भारत के भाल पेऔर संस्कृति की ढाल सेनव पीढ़ी निर्माण करतें हैंआओएक किताबों का शहर रचते हैंकुछ किस्से तुम सुनाओकुछ कहानियां मैं सुनाऊंबिजली की तारों में उलझी इस दुनियां कोकिसी ओर लेकर चलते हैआओएक किताबों का शहर रचते हैंतकनीकी युग में ध्वस्त होती भावनाओं कोफिर से जीवित करतें हैंभारत के महान इतिहास कीस्वर्णिम रचनाओं को पढ़ते हैंआओएक किताबों का शहर रचते हैं…

— सोनिरिका कृष्णियां, टीजीटी ,बिरला स्कूल , पिलानी

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