परीक्षा काल के वास्तविक शिक्षक

सर्दी का समय  है ,सभी ओर  सुहाना वातावरण है। धुंध भरी भोर, सुहावनी सूर्य की किरणे, मीठी-मीठी जाड़े की शाम, वास्तव में मोहक दौर प्रतीत होता है।मगर इस वर्ष का अनुभव जरा अलग है। कोरोना महामारी के चलते हमारी दिन- प्रतिदिन की क्रियाओं  में बदलाव तो अवश्य ही आया है।

हाल ही में खबरें तीसरी लहर  के प्रति चिंता व्यक्त करती है।दूसरी  ओर  , बच्चों के स्कूल खुलने का दौर चल रहा है।  महामारी के चलते, लम्बे समय से स्कूल बंद होने से जो बच्चों पर प्रभाव  पड़ा है। उसके बाद बच्चों के व्यबहारएवं मस्तिष्क पर असर कुछ ऐसा है कि एक डर  सा बन गया है।  एक लम्बे समय तक सामाजिक विकास से दूर होकर ऑनलाइन एजुकेशन  जैसी चुनौतियां का सामना कर जब बच्चे  वापिस स्कूल जाने लगे है । मन में कोरोना महामारी के प्रति एक अनिश्चितता बनी  हुई है ।यह समझना अत्यंत आवश्यक होगा कि परीक्षा  में न केवल टीचर्स एवं स्कूल  वल्कि अभिभावकों का भी महत्वपूर्ण योगदान है।  ऐसे में अभिभावक का अपने बच्चों के भविष्य  की चुनौतियों को लेकर चिंचित होना स्वाभाविक है।आज के समय की बात करें तो हो हमारी दिनचर्या में कई बदलाव आए है।  कुछ अच्छे और कुछ अलग।  आजकल समाज के लोगों से मिलना -जुलना , बाहर निकलना , खेलना , वातावरण के समीप रहना काफी हद तक कम हो गया है। ऐसे में ‘मानसिक असंतुलन ‘ बच्चों में काफी रफ़्तार पकड़ रहा है।  यह बच्चे को अंदर तक झिंझोड़ कर रख  देता है।  ऐसे में बच्चे   अपने आप को और अपनी क्षमताओं को समझ पाने में असमर्थ हो जाते हैं ।  और यही वो जगह है जहाँ से उनकी ऊर्जा दिशा लेती है ।  सहानुभूति

न मिलने पर बच्चे नकारात्मककार्यों में अपनी ऊर्जा का प्रयोग करते है। ऐसे में अगर समय रहते अभिवाभाक सतर्क हो जाये तो बहुत सी चुनौतिओं का  समय से पूर्व ही हल हो जाएगा ।

कुछ प्रयास इस प्रकार से है

उन्हें सुनना शुरू करें

बाल मनोविज्ञान कहता है की बच्चे का विवेक अत्यंत काल्पनिक शक्ति से बना होता है। बच्चे अपने आस पास की चीजों को देखकर अपने मस्तिस्क में कई  चित्र बना लेते है।  अभिवाभावक् बच्चो की बातों  में दिलचस्बी दिखाए एंवम उनके विचारो को सम्मान  दे । बच्चों को इससे एक रफ़्तार मिलती है ओर बह पहले से जयादा आत्मविश्वास प्राप्त करते है।

अपने बच्चो को समय दे।

महामारी के इस कठिन काल में जब बच्चे सहानभूति खोजते है तो अभिभावक का पात्र अत्यंत आवश्यक हो जाता है।  बच्चे के साथ समय ब्यतीत करे उनकी बातें सुने। उनके साथ कोई खेल खेलें, उनकी पसंदीदा कविता या कहानी पढ़े ।  मूल विचार यह है की उन्हें महसूस हो की बह अकेले नहीं है

 

उनकी अच्छाई की प्रंसंसा करे

किसी आदिबासी समुदाय में पेड को काटा नहीं जाता बल्कि उसे नकारमतक शव्द वोले जाते है।  यह पाया गया है की बो पेड कुछ समय वाद खुद ब खुद ही सुख जाता है।  जिस प्रकार की ऊर्जा हम अपने बच्चे के पास पहुंचते है उनकी प्रगति को निश्चित करता है।  उन्हें उनकी गुड कुलाइटी के लिए प्रशंशित करे  और यह देखने को मिलेगा की वे पहले से ज्यादा  अच्छा कर रहे है। उनकी हर एक उपलब्धि को मनाये।

 

तुलना करने से बचे

अगर आपसे नमक और चीनी की तुलना करने को कहा जाये तो आप कहेगे की दोनों विल्कुल विपरीत है।  दूसरा शव्दो में कहे  की हर एक अपने आप में महत्वपूर्ण है।  ठीक उसी प्रकार  से हर एक बच्चा अलग होती है।  हर एक बच्चे में एक अलग क्षमता है, जो बाकी सब से भिन्न है।  इसलिए अपने बच्चो की  दूसरे से तुलना करने से बचे।  वल्कि  अपने बच्चे के अंदर की क्षमता, हुनर को पहचाने, बह उसे अपने आप को समझने के लिए प्रेरित करे ।

 

सामाजिक मीडिया को वयाकुलता न बनने दे :

आज के दौर में  सामाजिक मीडिया चरम सीमा पर है । आमने सामने बातचीत घटने से ऑनलाइन चैटिंग तेजी दे बढ़ रही है।  ऐसे में बचे भी अपने आप को सामाजिक मीडिया की तरफ आकर्षित पाते है।  परन्तु सीमा न पार की जाये , यह अभिवाभावक् सुनिश्चित करे।  बच्चो के साथ समय समय पर विचारो का आदान प्रदान करे , जिससे बे सामाजिक मीडिया  की और जरुरत से जयादा खिचाव   महसूस न करे।

 

पौष्टिक भोजन को महत्व दे :

किसी भी कार्य की पूर्ति के लिए हमरे शरीर का साथ होना अत्यंत आवश्यक होता है।  बच्चो को सकारातमक ऊर्जा प्रदान करने के लिए उनकी भोजनचर्या में पोषक तत्व जोड़े , जिससे उनका सही दिशा में विकास हो सके ।  शुरुआत कुछ यु की जाए की उनके पसंदीदा फ़ास्ट फ़ूड घर पर ही बनाये जाये।  धीरे धीरे बे घर के खाने को ही स्वादिष्ट पाने लगेंगे।

 

वातावरण को बच्चो के अनुकूल रखे :

वातावरण बच्चे  को बहुत हद तक प्रभावित करता है।  उन्हें पांच तत्वों जिनसे मानव शरीर  बना होता है; पृथ्वी , जल , अग्नि,  वायु, एवं आकाश, से अनुकूल रखे।  कभी उन्हें किचन में साथ रखे।  कभी उन्हें गार्डन में कयारी बनाते समय साथ रखे ,जिससे वे उस मिटटी, पानी , पौधों  को अपना एक अंश महसूस कर सके।  कभी सितारों से भरे आसमान को निहारंने के लिए प्रेरित किया जाये।

इससे बच्चे इस पृथ्वी को जीवित प्राणी समझने लगेंगे।  अपने आप को इसका अंश और एक अलग नजरिऐ  से चीजों को देखेंगे , जिससे उनकी मानसिक क्षमता का विकास होगा।

संक्षेप में अगर कहे तो समय रहते हमें सावधानिया  बरतना व् एक दूसरे को समझना अत्यंत मत्वपूर्ण हो गया है।  माता पिता , गुरुजन का योगदान काफी मत्वपूर्ण है।

बच्चो की  मानसिक , शारीरिक अवं व्यावहारिक विकास के लिए योग , ध्यान , एवं शारीरिक व् मानसिक क्रियाओं से जुड़ने से काफी लाभ मिलेगा ।

मस्त रहे , स्वस्थ रहे।

जय हिन्द।

 

  • नरेंद्र कुमार, पीजीटी भौतिक विज्ञानं व्  एनसीईआरटी काउंसलर ,बिरला स्कूल , पिलानी

 

*The views expressed in the blog are those of the author.

Leave a Comment

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *